आज इन्टरव्यू है |
मेरा !
पद है ,पत्नी बहू और्..........
शिशे के सामने ,
रुप संवारती मै |
क्रीम पाउडर लगा
खुद को छुपाती मै_
आह !
ये क्या नया दिख रहा |
चेहरा तो सुन्दर ,
किन्तु , मै ! गुम हो रहा |
डर है !
बईमान हो जाँउ कहीं
खुद भुल जाँउ नहीं |
इसलिए आज लिख रही
सुमन ,हृदय टटोल रही |
स्त्री , एक अनूठी कृति
ईश की उदेश्य हुई पूर्ति |
पर उसे ,
क्या सिद्ध करना है ?
प्रेम , ममता और लज्जा
यह तो , उसका गहना है |
आँखों के सागर में , नारी
दर्द का नीर समेटती है ,
मान के खातिर वह तो
अग्नि परीक्षा भी देती है |
पर क्यूँ ,
आज मजबूर इतनी
बनती क्यूँ पाषाण मूर्ति ?
जब ,
अस्तित्व उसकी ,
रुपये में गिनी जाती है |
और
कम हो तो ,
अग्नि में झोंकी जाती है |
शिक्षित मै यह पूछ रही |
क्यूँ ?
आज भी लिख यह लिख रही |